श्रीगंगानगर26 मिनट पहले
श्रीगंगानगर के श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर में श्रीकृष्ण राधिका का राज श्यामा स्वरूप।
कृष्ण जन्माष्टमी शुक्रवार को है। भगवान कृष्ण के लगभग हर मंदिर में कान्हा का नए तरीके से शृंगार किया जाएगा। उन्हें नए वस्त्र और कपड़े पहनाए जाएंगे। ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं एक ऐसा मंदिर जहां कान्हा को हर दिन नई ड्रेसिंग के साथ सजाया जाता है। उन्हें ड्रेसिंग के हिसाब से मैचिंग के हार और ज्वैलरी पहनाई जाती है और हर दिन नए शृंगार के साथ पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर में कन्हैया को सजाने के लिए तमाम प्रबंध हैं। उनके कपड़ों और गहनों के लिए मंदिर कैंपस में सोलह अलमारियां बनाई गईं हैं। इन्हीं अलमारियों में कान्हा के कपड़े और उन्हें पहनाने का अन्य सामान रखा जाता है। यह मंदिर है शहर के एन ब्लॉक में बना श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर।
श्रीगंगानगर का श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर।
प्रतिमा की जगह होती है वस्त्रों की पूजा
इस मंदिर की खासियत है कि यह प्रणामी संप्रदाय से जुडा है तथा यहां कान्हा की भक्ति की जाती है लेकिन कान्हा की मूर्ति की जगह उनके वस्त्र और गहने ही पूजे जाते हैं। असल में मंदिर से जुड़े सेवादार बताते हैं कि प्रणामी संप्रदाय की शुरुआत संत प्राणानाथ ने की थी। उनकी वाणी तारतम्य सागर या कुलजम स्वरूप नाम के ग्रंथ में वर्णित है। मंदिर में उसी तारतम्य सागर को भगवान कृष्ण और राधा का राजश्यामा स्वरूप माना जाता है और उसी स्वरूप को साकार रूप में दर्शाने के लिए यहां भगवान के वस्त्र और गहनों की हर दिन पूजा होती है।

मंदिर में अलमारी में रखे वस्त्र।
इसलिए है वस्त्र और गहनों के पूजन की परम्परा
भगवान कृष्ण जब कंस का वध करने करने के लिए मथुरा गए तो फिर लौट कर ब्रज नहीं आए। इस दौरान उन्होंने नंद बाबा को अपने गहने और कपड़े देकर कहा था कि मैया यशोदा से कहें कि वे इसे ही कान्हा का स्वरूप मान लें। प्रणामी संप्रदाय में भी उसी कान्हा के स्परूप की पूजा होती है। इसीलिए कान्हा के वस्त्र और गहनो को ही पूजा जाता है और इन्हीं वस्त्र और गहनों के लिए यहां पूरा वार्डरोब बनाया गया है।

मंदिर में रखी भगवान की मालाएं।
हर दिन वस्त्र बदलने के बाद लगते हैं पांच भोग
मंदिर में हर दिन भगवान को नए वस्त्र पहनाने के पीछे उद्देश्य हर दिन भगवान कृष्ण के नए स्वरूप की पूजा करना है। मंदिर के वार्डरोब से हर दिन नए वस्त्र चुने जाते हैं। इन्हीं वस्त्रों से भगवान का स्वरूप तैयार किया जाता है और इसके बाद भगवान को पूरे दिन में पांच भोग लगाए जाते हैं। चूंकि प्रणामी संप्रदाय भगवान काे बाल रूप में पूजता है तो उन्हें सुबह बाल भोग, फिर थाल भोग, उत्थापन, संध्या आरती और शयन के समय पांच अलग-अलग भोग लगते हैं। इसमें उन्हें भोग के समय के अनुसार अलग-अलग चीजों का भोग लगाया जाता है।

मंदिर में अलमारी में रखे भगवान के वस्त्र।
365 से ज्यादा हैं वस्त्र
मंदिर में करीब 365 से ज्यादा वस्त्र हर समय रहते हैं। इनकी संख्या इससे भी ज्यादा हो जाती है लेकिन बहुत ज्यादा संख्या होने पर इन्हें अन्य जगहों पर स्थापित होने वाली अन्य सेवा में भिजवा दिया जाता है। श्रद्धालुओं के घरों में शादी, जन्मदिन या अन्य खुशी का मौका होने पर वे भगवान को वस्त्रों का उपहार देते हैं और इसी व्यवस्था के कारण यहां वस्त्रों और गहनों की संख्या कई बार पांच सौ से ज्यादा हो जाती है। कई बार तो पुराने वस्त्रों को संदूकों में भरकर अलग रखना पड़ता है।