झालावाड़ (कोटा)7 घंटे पहले
बंटवारे की बात कहते हुए किशनलाल भाटिया की आंख नम हो जाती हैं।
बंटवारा नहीं होता तो शायद वह भारत नहीं आते। एक पल में सब कुछ बदल गया। यह बात कहते हुए किशनलाल भाटिया की आंख नम हो जाती हैं। झालावाड़ शहर के सकून ग्रीन सिटी में रहने वाले 95 साल के किशनलाल भाटिया की कहानी कुछ इसी तरह है। देश विभाजन की कहानी बताते समय आज वो दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक उठता है। किशनलाल भाटिया ने बताया कि जैसे ही बंटवारे के हालात बने एक पल में सब कुछ बदल गया। पाकिस्तान में बंटवारे के समय हिंदुओं पर सामाजिक धार्मिक दबाव बढ़ने के कारण उनको देश छोड़ना पड़ा।
लूटपाट और हिंसा होने से हुए थे प्रताड़ित
किशनलाल भाटिया उस पल को याद करते हुए बताते हैं कि वे परिवार के साथ पाकिस्तान के चार सद्धा जिला पेशावर में रहते थे। इस दौरान उन्होंने सिंगवाला में प्राइमरी और सगर गांव में मिडिल तक की शिक्षा प्राप्त की। सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन जैसे ही बंटवारे के हालात बने, उनके साथ हिंसा होने लगी। इस दौरान कई लोगों को लूटा गया। मारपीट भी की गई जबकि पुलिस और कानून के लोग सब चुप होकर देखते रहे। उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। जिसके बाद पाकिस्तान से भारत आने वालों की तादाद बढ़ गई।
यहां आकर की मजदूरी
किशनलाल बताते हैं कि वे पाकिस्तान में किराने का थोक व्यापार करते थे। लेकिन बंटवारे में एक झटके में सब कुछ खत्म हो गया। वे पाकिस्तान से अपने घर से 500 रुपए लेकर हवाई जहाज से भारत में आए थे। इस दौरान वे कुरुक्षेत्र में रहे। इसके बाद लुधियाना आ गए। भारत आने के बाद उन्होंने मेहनत मजदूरी की। इस दौरान रिक्शा चलाया, ट्रेन में मूंगफली बेची। इसके बाद लुधियाना में फोटोग्राफी सीख कर खाने कमाने के लिए निकल पड़े। ऐसे में उन्हें राजस्थान के झालावाड़ जिला शांतिप्रिय होने की जानकारी मिली तो वे यहीं आकर बस गए।
खुदाई खिदमतगार पार्टी नहीं चाहती थी बंटवारा
किशनलाल बताते हैं कि पाकिस्तान में अब्दुल गफ्फार खान गांधीवादी नेता थे। वह नहीं चाहते थे कि बंटवारा हो। उनकी पार्टी जिन्ना के खिलाफ थी। वह अल्पसंख्यक हिंदुओं के समर्थक थे। किशनलाल ने बताया कि वे खुद और उनके दो भाई उनकी पार्टी के सदस्य थे और जब भी कोई धरना-प्रदर्शन होता था। वह सक्रिय रूप से भाग लेते थे। ऐसे में बंटवारे के दौरान हालात बिगड़े और उनके साथ हिंसा होने लगी तो खान ने समर्थन दिया और हिंदुओं की रक्षा की।