जयपुर24 मिनट पहले
राजस्थान यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष पद के मुकाबले में एक नाम खासा चर्चा में है। ये है निहारिका जोरवाल। सचिन पायलट खेमे के मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी निहारिका NSUI के टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। NSUI से एक दर्जन से ज्यादा छात्र अध्यक्ष पद के लिए टिकट मांग रहे हैं, इसलिए उन पर वंशवाद के आरोप भी लग रहे हैं। ऐसे कई सवालों के जवाब जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर ने निहारिका से एक्सक्लूसिव बातचीत की।
निहारिका ने कहा कि यूनिवर्सिटी में विधायक और मंत्री वोट नहीं देते, न ही नॉमिनेट करके कोई अध्यक्ष बनता है। ऐसे में मेरे पर परिवारवाद का आरोप लगाना पूरी तरह गलत है। लेकिन अगर मैं अध्यक्ष बनी, पिताजी के मंत्री होने का फायदा जरूर मिलेगा।
पिता और मंत्री मुरारीलाल मीणा के साथ निहारिका जोरवाल। फिलहाल उनके पास एनएसयूआई में कोई पद नहीं है।
सवाल – RU में आपका टिकट पक्का माना जा रहा है, क्या यह सही है?
जवाब – अगर मेहनत को देखकर एनएसयूआई टिकट देगी। तो मैं कह सकती हूं कि मेरा टिकट पक्का है। बाकी टिकट का फैसला तो एनएसयूआई हाईकमान करेगा। मैं लगातार छात्रों के बीच रहकर मेहनत कर रही हूं। इसलिए मुझे टिकट मिलना चाहिए।
सवाल – आपके पिता मंत्री हैं, क्या आपको इसका फायदा मिल रहा है?
जवाब – नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मुझे नॉमिनेट कर के थोड़ी कोई पद दिया जा रहा है। यूनिवर्सिटी में तो बकायदा इलेक्शन होंगे। इसमें छात्र जिसे चुनेंगे, वहीं अध्यक्ष बनेगा। ऐसे में परिवारवाद का आरोप लगाना पूरी तरह गलत है। हां, मैं पॉलीटिकल बैकग्राउंड से हूं। मैंने बचपन से राजनीति देखी है। ऐसे में अगर मैं अध्यक्ष बनी, तो विश्वविद्यालय के छात्रों को काफी फायदा होगा।
क्योंकि बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो आम छात्रों को नहीं पता है। मेरे पिता सक्रिय राजनेता है। मैं बचपन से उन्हें देखती आई हूं। ऐसे में मुझे अच्छे से पता है कि किस तरह राजनीति होती है और कैसे अपने काम करवाए जाते हैं।

निहारिका का कहना है कि वे पिछले 4 साल से स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और पिता मुरारीलाल मीणा के साथ एक तस्वीर में।
सवाल – क्या छात्रसंघ चुनाव में भी आपके पिता के मंत्री होने का आपको फायदा मिलेगा?
जवाब – छात्र राजनीति में विधायक और मंत्रियों के वोट नहीं पड़ते हैं। यहां पर छात्र शक्ति ही सर्वेसर्वा होती है। लेकिन कई बार प्रशासन छात्रों की बात नहीं सुनता। ऐसे में अगर में अध्यक्ष बनी तो मेरे पिता के मंत्री होने का मुझे फायदा मिल सकता है।
सवाल – राजस्थान विश्वविद्यालय में आप किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगी?
जवाब – मेरा सबसे प्रमुख मुद्दा लॉ कॉलेज में प्लेसमेंट सेल को स्थापित करना है। क्योंकि 15 से ज्यादा बैच निकल जाने के बाद भी अब तक वहां स्टूडेंट्स को रोजगार के लिए परेशान होना पड़ रहा है। मैं खुद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रही हूं। इसलिए मुझे पता है, यहां हालात बहुत बदतर हैं। इमारतें जर्जर हैं। सुरक्षा के नाम पर सिर्फ बातें हैं। बॉयज हॉस्टल और गर्ल्स हॉस्टल के बीच सिर्फ 1 सड़क का फर्क है। ऐसे में लड़कियों की सुरक्षा एक प्रमुख मुद्दा है। इसके साथ ही जल्द ही हम घोषणा पत्र भी जारी करेंगे।

निहारिका पॉलिटिक्स में जितनी एक्टिव हैं, उतनी ही पढ़ने में भी अव्वल। राजस्थान यूनिवर्सिटी में बीए ऑनर्स थर्ड ईयर में उनकी 78% मार्क्स हैं।
सवाल: अगर आपको अध्यक्ष की जगह महासचिव पर चुनाव लड़ाया गया, तो क्या चुनाव लड़ेंगी?
जवाब- नहीं, मैं सिर्फ अध्यक्ष पद पर ही चुनाव लडूंगी।
सवाल: अगर आपको अध्यक्ष पद का टिकट नहीं मिला। तो क्या निर्दलीय चुनाव लड़ेगी?
जवाब- नहीं, मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी। मेरा परिवार पूरी तरह कांग्रेस को समर्पित है। मुझे भी घर में रहकर खाना खाना है। इसलिए मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी। पार्टी जिसे भी टिकट देगी, मैं उसके लिए काम करूंगी।

2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में भी निहारिका ने एक्टिव होकर कैंपेनिंग में हिस्सा लिया था।
कौन हैं मुरारीलाल मीणा
1998 से 2008 तक बांदीकुई और वर्तमान में दौसा से विधायक मुरारी लाल मीणा मंत्री हैं। उन्हें सचिन पायलट गुट का माना जाता है। उनकी राजनीतिक शुरुआत भी 1979 में छात्रसंघ चुनाव से सिकराय में हुई। विधायकी का पहला चुनाव 2003 में बसपा के टिकट से बांदीकुई सीट पर लड़ा और जीते।

यह तस्वीर राजस्थान विधानसभा की है। हर विधानसभा सत्र के दौरान निहारिका अपने पिता के साथ ही रहती हैं।
साल 2008 में भी बसपा के टिकट पर दौसा से जीते, लेकिन कांग्रेस में विलय करने वाले 6 विधायकों में शामिल थे। इसलिए पहली बार पीडब्ल्यूडी मंत्री बनाए गए। 2013 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा पर हार गए। 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते। निहारिका की माता सविता मीणा 2019 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद का चुनाव भी लड़ चुकी हैं, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।
