राजस्थान में क्यों तेज हुई सियासी हलचल, पायलट के बाद जेपी नड्डा का कोटा दौरा, क्या हैं मायने?


Kota News: जब भी चुनावी सरगर्मियां तेज होती है, कोटा संभाग में दिग्गजों का आना शुरू हो जाता है. आखिर कोटा संभाग राजनैतिक लिहाज से अहम क्यों है? सियासत की बिसात पर कोटा संभाग में प्रमुख मोहरे होते हैं, या यूं भी कहें कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना हो या बडा पद हांसिल करना हो तो, राजनैतिक सैहरा यहीं से बांधा जाता है. इसीलिए चुनाव की नजदीकता के साथ ही बड़े दिग्गजों का यहां आना शुरू हो जाता है. हाली ही में सचिन पायलट (Sachin Pilot) के दौरे ने सियासी हलचल को तेज कर दिया.

उसके बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कोटा आना सियासी मायनों में अहम माना जा रहा है. इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी गई है. आज 14 अक्टूबर को संगठन मंत्री चन्द्रशेखर भी कोटा संभाग के नेताओं की बैठक ले रहे हैं. राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड में कोटा संभाग के नेता कतई पीछे नहीं हैं. दिल्ली में बीजेपी की जुगलबंदी ठीक रही तो आने वाला मुख्यमंत्री हाडौती से होगा ये कहना भी अतिशोक्ति नहीं होगी. हलांकि सियासत के रंग अनेक हैं, कब कहां कौन सा दाव बैठ जाए ये कहना मुश्किल होगा. फिर भी खेतों में सोना उगलने वाली कोटा की धरा पर इन दिनों राजनैतिक बादल छाए हुए हैं.

बड़े नेताओं का दौरा कोटा दौरा

कोटा संभाग में इन दिनों राजनीतिक हलचल तेज है. सचिन पायलट के दौरे ने तो पूरे राजस्थान में ही चुनाव विगूल बजा दिया है. रूठों को मनाना और पुरानों को जगाने का काम शुरू कर दिया है. साथ ही युवाओं में भी जोश भर दिया है. इससे पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी कोटा में कांग्रेस पर जमकर हमला बोला. अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 20 और 21 अक्टूबर को कोटा आने वाले हैं. ऐसे में कोटा अपने आप में सियासत की नई इबारत लिखने जा रहा है. कोटा संभाग ने बीजेपी को मुख्यमंत्री दिए हैं, अब एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनती है तो कोटा से ही मुख्यमंत्री का रास्ता निकलेगा ये कहना जरूर जल्दबाजी होगा. हलांकि इसमें कई हद तक सच्चाई भी है, ऐसे में सभी को साथ लेकर चलने की चुनौती यहां होगी.

कोटा से जाता है देशभर में संदेश

कोटा में देशभर से कोचिंग छात्र आते हैं, इसलिए भी कोटा का महत्व है. यहां का संदेश पूरे देश में जाता है. इसके साथ ही आद्योगिक नगरी, शैक्षणिक नगरी के साथ राजनैतिक भागीदारी यहां से अधिक रहती है. बड़े जातिगत समीकरण भी यहीं से बनते, बिगडते हैं. कोटा से बड़े नेता भी आते हैं चाहे वह कांग्रेस के हो या बीजेपी के. देश और प्रदेश में कोटा का प्रतिनिधित्व काफी अधिक रहा है. इस लिहाज से भी कोटा को महत्व दिया जाता रहा है.

ये हैं जातिगत समीकरण

कोटा संभाग की बात करें तो यहां दो लोकसभा कोटा बूंदी लोकसभा और झालावाड़ आती है. यहां की दोनों लोकसभा सीट बीजेपी के पास है. यहां के 17 विधानसभा सीट में से 10 बीजेपी के पास और 7 कांग्रेस के पास है. हालांकी इसमें से एक-दो सीट पर जीत का अंतर कम है और वह बीजेपी के पास रही हैं. कुछ सीटों ने जातिगत मायने ही बदल दिए. वैसे तो कोटा संभाग में कई क्षेत्र गुर्जर और मीणा बहुल्य है. जिसमें कोटा, लाडपुरा, बूंदी, झालावाड़, रामगंजमंडी, छबडा, बूंदी, केशवराय पाटन, खानपुर, सांगोद, पिपल्दा, अंता में गुर्जर 20 से लेकर 40 हजार तक की संख्या में हैं.

जबकि हिंडौली विधानसभा में करीब 55-60 हजार गुर्जर हैं. इसीलिए पायलट के फोलोअर्स यहां ज्यादा हैं. वहीं लगभग सभी विधानसभा में मीणा जाति की बात करें तो पूरे हाडौती में मीणा बहुल्य क्षेत्र हैं, जिसमें सबसे अधिक पिपल्दा, केशवराय पाटन, बूंदी और हिंडोली में 40 से 45 हजार वोटर्स हैं. हलांकि कोटा उत्तर, दक्षिण, झालरापाटन, मनोहरथाना, किशनगंज में मीणा वोटर्स की संख्या बेहद कम हैं, यहां 10 से 15 हजार के लगभग वोटर्स हैं. जबकी छबडा, खानपुर, लाडपुरा, सांगोद, बारां, अंता में भी अच्छी संख्या मीणा जाति के लोग हैं. इसके साथ ही एससी वर्ग के लोग हर विधानसभ में बहुल्य हैं. कोटा उत्तर में सर्वोधिक मुस्लिम हैं और कोटा दक्षिण में सबसे अधिक ब्रह्मण वोटर्स हैं. इसलिए यहां इन्हीं को टिकट दिया जाता है.

कोटा संभाग में दो धडों में हैं बीजेपी, कांग्रेस

कोटा संभाग बीजेपी का गढ़ है, यहां अधिकांश सीटें भजापा के पास आती हैं. यदि पार्टी एकजुट रहे तो ये संख्या बढ भी सकती है. हालांकी यही हाल कांग्रेस का भी है, यहां भी पार्टी दो गुटों में बंटी हैं, जिसका उदाहरण सचिन पायलट की यात्रा के दौरान देखने को मिला. अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आ रहे हैं, ऐसे में एक शहर जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में अलग बैठक हो रही है. वहीं पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल के नेतृत्व में भी बडी संख्या में कार्यकर्ताओं की बैठक हुई.

विधानसभा चुनाव में गुंजल को अपनी ही पार्टी के नेताओं से चुनौति मिली थी. कांग्रेस में हाडौती में केवल धारीवाल गुट हावी है, लेकिन सचिन पायलट के दौरे में धारीवाल गुट को छोडकर सभी एक मंच पर दिखाई दिये. हालांकी पार्टी में हर जगह गुटबाजी हावी है, जिसका सीधा असर पार्टी प्रत्याशी को भुगतना पड़ता है. जहां यह स्थिति नहीं है वहां चुनाव जीतना आसान हो जाता है.  

पन्ना प्रमुख तक जाने की तैयारी

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बूथ कार्यकर्ताओं से संवाद करेंगे. बीजेपी को चुनाव में जीत हासिल करनी है तो बूथ पर बैठा कार्यकर्ता और पन्ना प्रमुख तक धरातल पर कार्य करना होगा. इससे पहले भी विधानसभा और लोकसभा में बूथ प्रमुख और पन्ना प्रमुख की चर्चा जोरों पर रही थी, लेकिन पूरी तन्मयता से धरातल पर कार्य नहीं हुआ. चुनाव से एक वर्ष पहले ही इस पर फोकस किया जाना कहीं ना कहीं एक-एक वोट को साधने का प्रयास जेपी नड्डा का होगा. 

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