जयपुर10 मिनट पहले
बीकानेर ज़िले का मोमासर कस्बा लोक कला, संगीत और संस्कृति के रंगों से सरोबार रहा। दो दिन चलने वाले इस ऐतिहासिक उत्सव में राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों से लोक कलाओं को सहेजने वाले 200 से ज़्यादा कलाकारों ने अपनी मधुर प्रस्तुतियों से समां बांधा और अनेक दस्तकार और शिल्पकारों ने अपनी हस्तकलाओं का प्रदर्शन भी किया। देश-दुनिया से पधारे करीब 10,000 लोगों के इस कार्यक्रम में शामिल होने और कलाकारों को प्रोत्साहन देने पहुंचे।
मादल को भील समुदाय के लोग गवरी नृत्य में बजाते हुये नृत्य करते हैं और ढाक को खास तौर पर दुर्गा पूजा में बजाया जाता है।
मोमासर उत्सव एक ऐसा अनोखा उत्सव है जहां लुप्त हौती कला, संगीत परम्पराएँ देखने को मिलती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है ढाक और मादल वादन। इस परंपरा में ढाक, ताकि और मादल का वादन होता है। इसे खास तौर पर भील समुदाय द्वारा पेश किया जाता है। थाली सामान्य थाली जैसी होती है जबकि मादल ढोलकनुमा और ढाक डमरू जैसे आकार का होता है। मादल को भील समुदाय के लोग गवरी नृत्य में बजाते हुये नृत्य करते हैं और ढाक को खास तौर पर दुर्गा पूजा में बजाया जाता है। ढाक और मादल वादन गवरी पूजा के दौरान की एक परंपरा हैं।
इस परंपरा के तहत गवरी पूजा के दौरान पूरे सवा महीने ये कलाकार ना तो पैरों पें कुछ भी पहनते हैं। न हीं कोई भी हरी सब्जी खाते हैं। एक समूह में करीब 4 से 8 कलाकार होते हैं। ये मुख्य रूप से शिव पार्वती कथा, राम कथा और दुर्गा के भजन गाए जाते हैं। मोमासर उत्सव में झाड़ोल (उदयपुर) के हीरा लाल और साथियों ने ढाक और मादल वादन की प्रस्तुति दे कर लोगों से खूब वाह वाही बटोरी।यह पहला ऐसा आयोजन है जिसमें बड़े स्तर पर कम्यूनिटी पार्टीसिपेशन होता है। कस्बे के जो निवासी कहीं और जाकर बस गए हैं वो भी इस आयोजन में ज़रूर शामिल होते हैं।