भोपाल: गिद्धों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास, इनक्यूबेशन सेंटर में लगाई गई आधुनिक मशीनें


Protection of Vultures: मध्य प्रदेश में गिद्धों की संख्‍या में भारी गिरावट आई है. जिसके बाद इनका संरक्षण जरूरी हो गया है. मध्यप्रदेश में पाए जाने वाले गिद्धों की नौ प्रजातियों पर प्रकाश डालते हुए वनविभाग ने बताया कि गिद्धों की तेजी से कम होती आबादी एक गंभीर समस्या बन चुकी है.
 
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए प्रकृति स्वच्छता कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की संख्या बढ़ाने के प्रयास के लिए भोपाल के नजदीक मडोरा गांव में बनाए गए देश के चौथे इनक्यूबेशन केंद्र में आधुनिक इंक्यूवेटर उपकरण लग चुके हैं. इस केंद्र में उपकरण का परीक्षण भी कर लिया गया है. 

कर्मचारियों की नियुक्ति

2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में निर्मित हो रहे इस केन्द्र के संचालन के लिए 8 अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त किया जा चुका है. इसमें एक साइंटिफिक ऑफ़िसर, एक कंप्यूटर ऑपरेटर, एक ड्राइवर, एक बॉयोलॉजिस्ट, 2 वल्चर कीपर और 2 चौकीदार शामिल हैं. गिद्धों के विशेषज्ञ रमाकांत दीक्षित ने बताया कि यह एक अच्छा प्रयास है. इस तरह के प्रयास पहले भी हुए हैं, जो सफल भी रहे हैं. लेकिन इसके लिए एक प्रतिबद्धता और प्रबंधन की जरूरत है जो लंबे समय तक चलती है.

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तापमान किया जाता है संतुलित

प्रकृति स्वच्छता कर्मी के बारे में भोपाल के वन्यप्राणी विशेषज्ञ ने यह भी बताया कि गिद्धों का प्रजनन अक्टूबर-नवंबर में शुरू होता है. इस अवधि गिद्ध परिपक्व होते हैं और चूजे निकलते हैं. ये ठंड का समय होता है, लेकिन अंडों को निर्धारित तापमान 36 डिग्री सेल्सियस के करीब चाहिए. जो कि ठंड के मौसम में संभव नहीं है. यह तापमान इंक्यूबेटर उपकरण की मदद से संतुलित किया जाता है. 55 दिनों तक अंडे उक्त उपकरण में रखे जाते हैं.

भोपाल चौथा केंद्र

वही रमाकांत दीक्षित ने यह भी बताया कि देश में आठ गिद्ध प्रजनन केंद्रों में से चार में इंक्यूबेशन केंद्र की स्थापना की गई है. इनमें भोपाल का केंद्र चौथा है. बाकी के तीन केंद्र हरियाणा के पिंजोर, पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व के राजाभटखवा और ओडिशा के नंदन कानन जूलाजिकल पार्क में हैं.

मध्यप्रदेश के मेंडोरा गांव में बनाए केंद्र के अंदर 60 गिद्ध भी शामिल हैं. जो लंबी चोंच वाले व सफेद दुम वाली प्रजाति के हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक कभी देशभर में इनकी संख्या चार करोड़ से अधिक थी और अब चार लाख से भी कम है. बीते कुछ सालों में इनकी संख्या बढ़ी है इनमें और बढ़ोतरी हो इसके लिए मशीनों की मदद ली जा रही है.

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