उदयपुर34 मिनट पहले
उदयपुर के कालाजी गोराजी में भगवान गणेश की एक अनौखी मूर्ति है। विनायक जी की सूंड दायीं और मुड़ी हुई है। मंदिर के व्यवस्थापक मोहनलाल भट्ट बताते है कि इस प्रतिमा की 12 भुजाएं है जिसमें बायीं और की 6 भुजाओं में त्रिशूल , चक्र , धनूष, माला, गदा और लड्डू है। वहीं दायीं और वाले 6 हाथों में कमल पुष्प , पाश ( शत्रू का बांधने वाली रस्सी से निर्मित फंदा ) माला , अनाज की बाली और दंत ( एकदंत गणपति का टूटा दांत) है। नाभि पर सुंदरी माता की छोटी प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पीछे तोरण के दोनो स्तंभों पर ऋषियों का समूह , शिव- पार्वती और विष्णु- लक्ष्मी अंकित है। इस प्रतिमा में भगवान गणेश का प्रिय मूषक अंकित नहीं है लेकिन नंदी बैल , गज और सिंह और गरूड़ अंकित है। पेट पर सुंदरी माता जी विराजित है इसलिए इन्हें सुंदरी विनायक कहते है। ये मूर्ति 4 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी है। ऐसी मूर्ति देश में कहीं नही है। गणेश चतुर्थी पर मूर्ति पर चंदन का लेप किया जाता है फिर पर चांदी का विशेष श्रंगार होता है , भोग में सत्तू के लड्डू लगता है। चतुर्थी पर 10 हजार की करीब भक्त दर्शन करने आते है।
मंदिर की पूजा अर्चना करने वाले भट्ट परिवार ने बताया कि यह मंदिर विशेष उपहार में दिया गया था।
विशेष उपहार में दिया गया
प्रो. पी. एस. राणावत बताते है कि मेवाड़ राजपरिवार की बाणमाता जी की पूजा अर्चना करने वाले भट्ट परिवार को श्री सुंदरी विनायका जी के मंदिर को महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा विशेष उपहार में दिया । ये प्रतिमा संग्रामसिंह द्वितीय के काल की है। जगराम भट्ट को इनकी पूजा की जिम्मेदारी दी गई थी। तब से इनका परिवार सेवा कर रहा है।

ये प्रतिमा 18वीं शताब्दी की है। ऐसी मूर्ति देश में कहीं देखने को नहीं मिली है।
18वीं शताब्दी की प्रतिमा
इतिहासकार डॉ श्री कृष्ण जुगनू बताते है कि ये प्रतिमा 18 वी शताब्दी की है । जो कि पूरे एक सफेद पत्थर पर बनी हुई है। शारदा तिलक ग्रंथ में वर्णित शक्ति गणपति के ध्यान से वर्णित है । गणपति के उदर ( अंक) पर पुष्टी नामक भार्या विराजित है। इसको अंकस्थाया कहा जाता है। ये ध्यान मूर्ति वशीकरण जैसे उद्देश्य के लिए बनाई जाती है। इन लक्षणों वाली विनायक मूर्तियों में यह बेजोड़ और दुलर्भ है। ऐसी मूर्ति देश में कहीं देखने को नही मिली है।
रिपोर्ट: ताराचंद गवारिया