सुजानगढ़ (चूरू)3 मिनट पहलेलेखक: अखिलेश दाधीच
- कॉपी लिंक
छात्र हों, युवा या नौकरीपेशा सबके दिमाग में यही बात चलती रहती है कि जीवन में सफलता कैसे हासिल करें और लक्ष्यों को कैसे पाएं। इसके अलावा तनाव और गुस्से जैसी चुनौतियों से कैसे पार पाएं। राजस्थान के सरदारशहर में तेरापंथ धर्मसंघ द्वारा युगप्रधान 10वें आचार्य महाप्रज्ञ के समाधि स्थल (शांतिपीठ) के जरिए ऐसे ही समाधान देने की कोशिश की गई है।
इसे महाप्रज्ञ दर्शन हाईटेक म्यूजियम का रूप दिया गया है। यहां कोई भी व्यक्ति सफलता, लक्ष्य हासिल करने के अलावा तनाव, गुस्से पर नियंत्रण रखने सहित धर्म से जुड़े सवाल कर सकता है। इनके जवाब आचार्य महाश्रमण वीडियो के जरिए देते हैं। यह वर्चुअल रियलिटी (वीआर) टेक्नोलॉजी आधारित डिवाइस है। व्यक्ति को लगता है कि उन्हें आचार्य महाश्रमण से ही समाधान मिल रहा हो।
तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास, आचार्य महाप्रज्ञ की यादों को संजोए रखने, उनके जीवन व ज्ञान को टेक्नोलॉजी के जरिए आसानी से युवा पीढ़ी को समझाने के मकसद से महासभा ने श्रावकों के सहयोग से म्यूजियम बनवाया है। इस पर करीब 20 करोड़ रु. खर्च आया है। ये म्यूजियम समाज के हर वर्ग के लिए है। मुनि कुमारश्रमण व मुनि विश्रुत कुमार के मार्गदर्शन में म्यूजियम की डिजाइन मनीष बरड़िया और 50 लोगों की टीम ने की।
बरड़िया बताते हैं,‘दुबई एक्सपो में प्राइम मिनिस्टर म्यूजियम के लिए दुनियाभर से डिजाइनें पहुंची थीं। प्रजेंटेशन देखे तो टेक्नोलॉजी की समझ बढ़ी।’
हथेली रखते ही मंत्र ध्वनि शुरू
मोशन सेंसर लोटस: श्वेत कमल के ऊपर हथेली रखते ही मंत्रों ध्वनि शुरू होती है।
इंटरेक्टिव वॉल प्रोजेक्शन: जैन धर्म और भगवान महावीर के सिद्धांत बताता है।
महाश्रमण संवाद: वीआर टेक से लगता है कि आचार्य सामने बैठकर चर्चा कर रहे हैं।
ट्रैकबॉल कालचक्र: रोटेटिव क्रिस्टल बॉल से इन्फ्रोग्राफिक व वीडियो के जरिए महाप्रज्ञ के जीवन की नौ दशकों की उपलब्धि और प्रसंग जान सकते हैं।
थियेटर: 180 डिग्री स्क्रीन थियेटर में ग्लास सीलिंग व ग्लोसी टाइल्स हैं। स्क्रीन चलने पर दोनों तरफ फ्लोर में दिखता है। रोबोटिक्स लाइट एंड साउंड शो, टच स्क्रीन किओस्क, मेडिटेशन रूम, ओम गेम्स और लाइब्रेरी भी है।
दुनियाभर के म्यूजियमों से प्रेरित
जैन समुदाय द्वारा तैयार किए गए धर्मस्थलों में यह अकेला म्यूजियम है जो हाईटेक, स्मार्ट और डिजिटल भी है। आर्किटेक्ट और अर्बन प्लानर हितेंद्र मेहता बताते हैं,‘धोरों की धरती के बीच 16 हजार वर्ग फीट में बने इस पीठ में दुनियाभर के म्यूजियमों की खूबियां शामिल की गई हैं।