बांसवाड़ा44 मिनट पहले
जल और पर्यावरण संरक्षण का संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण इलाके में कॉलेज विद्यार्थी ने खुद के हाथों से तैयार की मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं।
मिट्टी में खेलने वाला बचपन अब उन्हीं हाथों के हुनर से लोगों को पर्यावरण बचाने का संदेश दे रहा है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए बांसवाड़ा के दूरदराज गांव में रहने वाला युवक खुद के हाथों से भगवान गणेश की मूर्तियां बना रहा है। ये मूर्तियां शुद्ध रूप से मिट्टी की बनी हुई हैं। कॉलेज में पढ़ने वाले इस छात्र ने खुद से हाथों से अब तक 15 मूर्तियां तैयार की हैं, जो कि समीपवर्ती 15 गांवों में गणेश भक्तों को दी जाएंगी। गांवों में पर्यावरण बचाओं की मुहिम चलाने वाले कुशलगढ़ के लोहारिया बड़ा ग्राम पंचायत के डूंगलावानी गांव के करण पुत्र कोमचंद्र डामोर फिलहाल कॉलेज के स्टूडेंट है, जिसे अपनी माटी से प्रेम है। आगामी 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। तब गांव के युवा बाजार में बिकने वाली POP की मूर्तियां लेकर आएंगे। वहीं 10 दिन के गणेश उत्सव के बाद इन मूर्तियों को शुद्ध तालाब, बावड़ी और नदी में डालेंगे। इससे होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से अपने इलाके को बचाने के लिए करण ने खुद के हाथों से मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं बनाई हैं।
मिट्टी वाले हाथों का हुनर।
बचपन से ही हुनरमंद
प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। गरीब जनजाति क्षेत्र में पहाड़ी इलाके में रहने वाले करण की सोच और हाथ का हुनर इसी ओर इशारा करता है। करण को बचपन में मिट्टी से खेलने का शौक था। तब वह बचपन में मिट्टी के खिलौने बनाता और बिगाड़ता था। विद्या निकेतन स्कूल में पढ़ते हुए भी करण ने 10वीं क्लास तक मिट्टी से गणेश प्रतिमाएं बनाई थी। स्कूल के पूर्व कार्यकर्ता अभिराज सिंह राठौड़ ने बताया कि पर्यावरण और जल संरक्षण को लेकर करण बचपन से ही सक्रिय था। वह स्कूल में भी बिना किसी फर्मे की मदद के मिट्टी की प्रतिमाएं बना देता था। अभी करण ने 15 मूर्तियां तैयार की हैं, जिनमें रंग भरने का अंतिम दौर चल रहा है। इसकी प्रतिभा को देखने के लिए स्थानीय लोग गांव तक आते हैं। वहीं पर्यावरण बचाओ का संदेश लेकर लौटते हैं।

मिट्टी की गणेश प्रतिमा में रंग भरता कलाकार।
कंटेंट : जगदीश चावड़ा (मोहकमपुरा)